खाटुश्याम चालिशा इन हिन्दि

श्री गुरु चरन ध्यान धर सुमिरि सच्चिदानन्द।

श्याम चालीशा भनत हु रच चोँपाइ छन्द॥




श्याम श्याम भजि वारम्वरा।

सहज ही हो भवसागर पारा॥

इन सम देव ना दुजा कोइ।

दीन दयालु न दाता होइ॥

भीम सुपुत्र अहिलवती जाया।

कही भीम का पोत्र कहाया॥

एह सव कथा सही कल्पनान्तर।

तनीक ना मानो इसमे अन्तर॥

वर्वरीक विष्णु अवतारा।

भक्तन हेतु मनुज तनु धारा॥

वासुदेव देवकी प्यारे।

यशुमति मेया नन्द दुलारे॥

मधुसूदन गोपाल मुरारी।

वृजकिशोर गोवर्धन धारी॥

सियाराम श्री हरि गोविन्दा।

दीनपाल श्री वाल मुकन्द॥

दामोदर रनछोड विहारी।

नाथ द्वरिकाधीश खरारी॥

नरहरि रूप प्रहलाद प्यारा।

खत्म फरि हिरन्यकुश मारा॥

राधा वल्लभ रूकमनि कान्ता।

गोपि वल्लभ कंस हनंता॥

मनमोहन चिन्तचोर कहाय।

माखन चोरि चोरि कर खाये॥

मुरलीघर यदुपति घनश्यामा।

कृष्णपतित पावन अभिरामा॥

मायापति लक्षीपति इसा।

पुरूषोत्तम केशव जगदीशा॥

विश्वपति त्रिभुवन उजियारा।

दीनवन्धु भक्तन रखवारा॥

प्रभुका भेद कोइ ना पाया।

शेष महेश थके मनियारा॥

नारद सारद ॠषि योगिन्दर।

श्याम श्याम सव रटत निरन्तर॥

करि कोविन्द करि सकल गिनन्ता।

नाम अपार अथाह अनन्ता॥


हर सृष्ठी हर युग मे भाइ।

ले अवतार भक्त सुखदाइ॥

हृदय माहि करि देखु विचारा।

श्याम भजे तो हो निस्तरा॥

कीर पडावत गनीका तारी।

भीलन की भक्ती वलीहारी॥

सती अहिल्या गोतम नारी।

भइ श्राप वश शिला दुखारी॥

श्याम चरन रज नित लाइ।

पँहुचि पति लोक मे जाइ॥

अजामिन अरु सदन कसाइ।

नाम प्रताप परम गति पाइ॥

जाके श्याम नाम अधारा।

सुख लहहि दुःख दुर हो सारा॥

श्याम सुलोचन हे अति सुन्दर।

मोर मुकुट सिर तन पिताम्वर॥

गले वेजयन्ति माल सुहाइ।

छवि अनुप भक्तन मन भाइ॥

श्याम श्याम सुमिरहु दिन राति।

श्याम दोपहर अरुपरभाती॥

श्याम सारथी जिसके रथके।

रोडे दुर होये उस पथ के॥

श्याम भक्त न कही पर हारा।

भीर परि तव श्याम पुकारा॥

रसना श्याम नाम रस पीले।

जीले श्याम नाम के हाले॥

संसारी सुख भोग मिलेगा।

अन्त श्याम सुख योग मिलेगा॥

श्याम प्रभु हे तन के काले।

मन के गोरे भोले भाले॥

श्याम सन्त भक्तन हितकारी।

रोग दोष अर्घ नाशे भारी॥

प्रेम सहित जो नाम पुकारा।

भक्त लगत श्याम को प्यारा॥

खाटु मे हेँ मथुरा वासी।

पार व्रह्म पुरन अविनासी॥

सुधातान भरि मुरलि वजाइ।

चँहु दिशि नाना जहाँ शुनि पाइ॥

वृद्ध वाल जेते नारी नर।

मुग्धो भयो सुनि वँशी के स्वर॥

दोडे दोडे पँहुचे सव जाइ।

खाटु मे जँहा श्याम कन्हाइ॥

जिसने श्याम स्वरूप निहारा।

भव भय से पाया छुटकारा॥



श्याम सलोने सावरे, वर्वरीक तनु धारा।

इच्छा पूर्ण भक्त की, करो न लाओ वार॥






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