शान्ताकारम भुजगशयन पद्मनाभ सुरेशम,
विश्वधारम गगन सदृशम मेघवर्न शुभांगम।
लक्षीकांत कमलनयन योगिभिध्यानगम्यम,
>वन्दे विष्नु भवभयहरम सर्व लोकेक नाथम॥
यम व्रह्मा वरूनेन्दु रूद्रमरूत स्तुन्वानि दिव्य स्तवेवेदः,
सांग पदक्रमेपनिषदे गार्यन्ति यम सामगः।
घ्यानावस्थित तदगतेन मनसा पशयाति यं योगिनो,
तस्यातम न विन्दुः सुरासुर देवाय तस्मे नमः॥
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