पाप प्रशमन स्त्रोत्र-paap prashaman stotra

पाप प्रशमन स्त्रोत्र श्री विष्णु जी को अर्पित एक मन्त्र हेँ। हम अनजाने मे जो पाप करते हेँ उस पाप से मुक्ती के लिये इसका पाठ आवश्यक हेँ। अर इसके पाठ से तो सारे पाप समाप्त हो जाते हेँ साथ हि इसके श्रवन करने से भि सारे पाप मिट जाते हेँ। पाप की मुक्ती के लिये इसका पाठ अर इसका श्रवन करना दोनो हि लाभकारी हेँ। तो चलिये अव इसका हम पाठ करते हेँ। मन्त्र कुछ इस प्रकार हेँ-


विष्णवे विष्णवे नित्यं विष्णवे विष्णवे नमः।

नपमामि विष्णु चित्तस्थमहंकारगतं हरिम्॥

चित्तस्थमिशेषाणामनादिनिधनं हरिम्।

विष्णुमीड्यमशेषाणामनादिनिधनं हरिम॥

विष्णुशिचत्तगतो यन्म विष्णुर्वुद्धिगतश्च यत।

योऽहंकारगतो विष्णुयो विष्णुर्मयि संस्थित॥

करोति कर्तृभूतोऽसो स्थावरस्य चरस्य च।

तत्पापं नाशमायाति तस्मिन् विष्णो विचिन्तिते॥

ध्यातो हरति यः पापं स्वप्ने दृष्टश्च पापिनाम।

तमुपेन्द्रमहं विष्णु नमामि प्रणतप्रियम॥

जगत्यस्मिन्निरालम्वे झजमक्षरमध्ययम।

हस्तावलम्वनं स्त्रोत्रं विष्णुं वन्दे सनातनम॥

सर्वेश्वरेश्वर विभो परमात्मान्नधोक्षज।

ॠषीकेश ॠषीकेश ॠषीकेश नमाऽस्तुते॥

नृसिंहानन्त गोविन्द भुतभावन केशव।

दुरुत्कं दुष्कृतं ध्यातं शमयाशु जनार्दन॥

यन्मया चिन्तिं दुष्टं स्वचित्तवशवतिना।

आकर्नय महावाहो अच्छमं नय केशव॥

व्रह्मन्यदेव गोविन्द परमार्थपरायन।

जगन्नाथ जगद्धातः पापं शमय मेऽच्युत॥

यच्चापराह्ने मध्याह्ने च तथा निशि।

कायेन मनसा वाचा कृतं पापमजानता॥

जानता च ॠषीकेश पुन्डरीकाक्ष माधव।

नामत्रयोच्चारनत सर्व यातु मम क्षयम्॥

शारीरं मे ॠषीकेश पुन्डरीकाक्ष मानसम।

पापं प्रशममायतु वाक्कृतं मम माधव॥

यद भुज्जानः पिवंस्तिष्ठन् स्वपन्जाग्रद यदा स्थित।

अकार्ष पापमर्थार्थ कायेन मनसा गिरा॥

महदल्पं च यत्पापं दुयोनिनरकावहम्।

तत्सर्व विलयं यातु वास्तुदेवस्य कीर्तनात॥

परं व्रह्म परं धाम पवित्र परमं च यत।

अस्मिन संकीतित विष्णो यत पापं तत प्रनश्यतु॥

तत्प्राप्य न निवर्तन्ते गन्धस्पर्शविवर्जितम।

सुरयय्तपदं विष्णोस्तस्तर्व मे भवत्वलम॥





विष्णु जी इया फोर कोइ भि पवित्र मन्त्र पाठ करने से पेहले आपको नाहाना आवश्यक हेँ। तो इसके पाठ से पेहले आप सुद्ध हो जाय। अर श्री विष्णु जी की इस मन्त्र का जाप करे।


॥ॐ नम नारयनाय नमः॥





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