धर्म केया हेँ-
सम्पुर्ण वेद, वेद को जानने वाले की स्मति अर उनका शील, सज्जनो का आचार अर अपने मन की प्रसन्नता इ धर्म का मूल हेँ। वेद, सत्पुरुषो का आचरन अर अपने आत्मा के ज्ञान से अविरुद्ध प्रियचरण ये चार धर्म के स्पष्ट लक्षन हेँ। 'श्रुति, वेद, स्मति, वेदानुकुल आप्तोक मनुस्म त्यादि शास्त्र, सत्पुरुषो का आधार जो सनातन अर्थात वेद द्वारा परमेश्वर प्रतिपादित कर्म अर अपने आत्मा मे प्रिय अर्थात जिसको आत्मा चाहता हे जेसा कि सत्य भाषण, ये चार धर्म के के लक्षन अर्थात इन्ही से धर्माधर्म का निश्यय होता हेँ। जो पक्षपातरहित न्याय सत्य का ग्रहण असत्य का सर्वदा परित्याग रूप अधार हे, उसी का नाम धर्म अर इसके विपरित जो पक्षपातसहित अन्यायचारन, सत्य का त्याग अर असत्य का ग्रहनरूप कर्म हे, उस को अधर्म केहते हेँ।
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