श्री कृष्ण अर महादेव का युद्ध


श्री कृष्ण अर महादेव सनातन धर्म को प्रमुख भगवानो मे से हेँ। श्री कृष्ण जेसे विष्णु जी के अवतार थे अर महादेव विष्णु जी को अपना आराध्य मानते थे। द्वापर युग मे महाभारत के अलावा अर भि वहत सारे भयानक युद्ध हुये। जिसमे महाभारत की तरहा वहत सेनिको ने अपने प्रान की वलिदान देना पडा। एसा हि एक युद्ध हुया था श्री कृष्ण अर महादेव के विच।



युद्ध का कारन-

श्री कृष्ण के पुत्र पद्मुम के पुत्र अनिरुद्ध यानी की कृष्ण जी के पोत्र अनिरुद्ध एक असुर कन्या से प्रेम करता था जिसका नाम उसा था। अनिरुद्ध जीससे प्रेम करता था ओ वानासुर का पुत्री थी। अनिरुद्ध अर उसा विना किस को वताय गन्धर्व विवहा कर चुका था। जव ए वात वाणासुर को पता चला तव उसने अनिरुद्ध को वन्दि वना लिया। जव वहत दिन तक अनिरुद्ध की कोइ खवर नेहि आइ श्री कृष्ण समेत सव चिन्तित हो गये। वाद मे गुप्तचर से खवर मिलि कि अनिरुद्ध को वाणासुर ने वन्दि वना लिया हेँ। तव श्री कृष्ण अपने पोत्र को छुडाने को लिये वारा अक्सोनि सेना लेकर वाणासुर के राज्य को घेर लिया।



महादेव से युद्ध का कारन-

वानासुर महादेव का भक्त था। महादेव वाणासुर से प्रसन्न होकर उसकि रक्षा का वचन दिया था। वाणासुर के हाजार हात थे।



श्री कृष्ण की महादेव से लडाइ-

जव श्री कृष्ण उनकी सेना लेकर वाणासुर पर आक्रमन के लिये आया तव वानासुर कि रक्षा के लिये महादेव भि अपनि विशाल सेना लेकर आइ। श्री कृष्ण वाणासुर के सेनिको का विध्वन्स करने लगे। महादेव भि श्री कृष्ण जी की नारायनी सेना का विध्वन्स करने लगे। जव श्री कृष्ण अर महादेव आमने सामने आइ तव महादेव अर श्री कृष्ण एक दुसरे के उपर मायावि अर विध्वन्स अस्त्रो का प्रयोग करने लगे। तव महादेव ने श्री कृष्ण पर अपनी सवसे शक्तीशाली अस्त्र पाशुपतअस्त्र को छोडा अर श्री कृष्ण ने इसके विपरित नारायनअस्त्र का प्रयोग किया। इसके वावजुद भि कोइ निष्कर्स नेहि निकला तव श्री कृष्ण ने महादेव पर निद्रास्त्र का प्रयोग कि ए अस्त्र महादेव पर लगते हि महादेव निद्रामग्न हो गये। वाणासुर ए देखकर भागने लगे तव श्री कृष्ण भी वाणासुर के पीछे दोड़ने लगा। कुछ हि दुरि मे हि कृष्ण ने वाणासुर को पकड़ लिया अर उसके सारे हात काटने लगा। जव वाणासुर के सेर्फ चार हात वाकि थे तव शीव जी नीद्रा से उठे अर वहत गुस्से मे आ गये। तव श्री कृष्ण वताया कि ओ वाणासुर को मारना नेहि चाहते। किउकि वाणासुर प्रहल्याद के वन्सज थे अर श्री कृष्ण अपने पूर्वजन्म मे प्रहलाय्द को वचन दिया था कि उसके किसि भि अवतार मे उ उसके वन्सज के किसि भि राक्षस को नेहि मारेङ्गे। श्री कृष्ण वताते हेँ सेर्फ ओ अनिरुद्ध को कारागार से छुडाने एहा आये हेँ। तव वाणासुर ने अनिरुद्ध को छोडा अर अपनी पुत्री उषा को अनिरुद्ध को साथ खुशी खुशी विदा किया।

इस तरह शीव जी अर श्री कृष्ण के विच युद्ध समाप्त हो गया।



शीव पुराण मे शीव जी का महत्व वताया गेया। अर विष्णु पुराण मे विष्णु जी का महत्व वताया गेया।

*जेसेकि शिवजी अर विष्णु जी दोनो एक हि हेँ इसिलिये दोनो मे कन श्रेष्ठ हेँ इसका विश्लषन नेहि करना चाहिये।




Post a Comment

0 Comments